
माता भूमि: पुत्रों अहम् पृथिव्या ।
विगत कई सदियों से हम भारतीयों का प्रकृति से बहुत गहरा सम्बन्ध रहा है | क्या हमने कभी सोचा है कि पृथ्वी हमारी माता है? यदि नहीं तो यही वह समय है, जब हमें अपने विचारों में आमूल बदलाव की आवश्यकता है | अथर्ववेद के भूमि सूक्त में वर्णित इस श्लोक में हम भूमि के पुत्र हैं | भारतीय संस्कृति में इस मान्यता को यथार्थ रूप में वर्णित किया गया है | एक पुत्र की भांति ही हमें भी हमारी धरती माता की सेवा करनी चाहिए, और यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है |
तो आइये ‘भूमि सुपोषण एवं संरक्षण’ के इस प्रयास में शाश्वत विकास के लिये राष्ट्रीय अभियान का हिस्सा बनें |
